सांस्कृतिक संरक्षण, नशा मुक्ति, बेरोज़गारी और भूमि कानून जैसे मुद्दों पर उत्तराखंड के युवाओं की आवाज़ - देवभूमि युवा संगठन

Igas 2025: To be celebrated on 13 Nov 2025. Detailed will be updated.
🌐 आज के समय में ईगास
आधुनिक जीवन में भी ईगास का महत्व कम नहीं हुआ। प्रवासी उत्तराखंडी इसे अपनी जड़ों से जुड़ने का माध्यम मानते हैं, और सोशल मीडिया के ज़रिए इसकी पहचान वैश्विक स्तर पर बढ़ रही है।
🛡️ संरक्षण की आवश्यकता
यह पर्व केवल एक परंपरा नहीं, बल्कि पीढ़ियों से चली आ रही सांस्कृतिक विरासत है, जिसे सहेजना ज़रूरी है। युवाओं की भागीदारी, लोक कार्यक्रमों और जनजागरूकता से इसे आने वाले समय तक जीवित रखा जा सकता है।
🕯️ ईगास बग्वाल एक त्योहार नहीं, एक भावना है —
जो भूत, भविष्य और वर्तमान को सांस्कृतिक सूत्रों से जोड़ती है।


🌟 ईगास बग्वाल: उत्तराखंड की सांस्कृतिक पहचान 🌟
ईगास बग्वाल उत्तराखंड, विशेषकर गढ़वाल क्षेत्र का एक प्राचीन लोक पर्व है, जिसे कार्तिक शुक्ल एकादशी को मनाया जाता है। यह पर्व भगवान विष्णु के चातुर्मासीय शयन के अंत और शुभ कार्यों की शुरुआत का प्रतीक है।
🔱 पौराणिक और ऐतिहासिक मान्यताएँ
भगवान राम की वापसी: माना जाता है कि राम के अयोध्या लौटने की खबर पहाड़ों में देर से पहुँची, इसलिए दीपावली 11 दिन बाद यहां मनाई गई, जो आगे चलकर ईगास बनी।
माधव सिंह भंडारी की विजय: गढ़वाल के वीर सेनापति की तिब्बत पर विजय की खुशी में यह पर्व और भी खास बना।
🔥 भैलो की परंपरा
"भैलो" या मशाल नृत्य, ईगास का मुख्य आकर्षण है। देवदार की लकड़ी से बनी मशालें घुमाकर लक्ष्मी माता का आह्वान किया जाता है। इसे "अंध्यारा" भी कहा जाता है, जो अंधकार से प्रकाश की ओर बढ़ने का प्रतीक है।
🐄 गोधन पूजन और पारंपरिक भोज
पर्व की शुरुआत पशुओं के स्नान, सजावट और भोजन से होती है। खास व्यंजन जैसे गेघनास (धान, झंगोरा, मडुवा) और पकवान (पूरी, सवाली, भुड़ा आदि) बनाए जाते हैं और सबमें बांटे जाते हैं।
🎶 सामुदायिक एकता और सांस्कृतिक गौरव
गाँव के लोग मिलकर गीत-नृत्य करते हैं, किस्से-कहानियाँ साझा करते हैं और सामाजिक एकता को मजबूत करते हैं। यह पर्व न केवल संस्कृति का उत्सव है, बल्कि समुदाय की आत्मा का प्रतीक भी है।